- 13 वें पायदान पर फिसला लखनऊ क्षेत्र, अधिकारियों के नए नए नियम बन रहे बसों के संचालन में बाधा
- कर्मचारियों के अनुसार रेस्ट में अनियमितता और कोरोना काल के दौरान घोषित हुए अतिरिक्त भत्ते के लिए आक्रोशित है कर्मचारी
- दिनभर गाड़ी चलाओ रात में गाड़ी भी धुलो, वरना करवाओ चालान : शाखाध्यक्ष
आशीष श्रीवास्तव
प्रतीकात्मक चित्र |
लखनऊ:- किसी भी संस्थान की प्रगति तभी संभव है जब उस संस्थान के कर्मचारी संतुष्ट हो तथा कमोवेश संस्थान के प्रगति मार्ग पर अग्रसर हो परंतु अधिकारियों की अनियमितता व शोषण के कारण कई बार कर्मचारी अपने दैनिक प्रगति रिपोर्ट के बढ़ते ग्राफ को खोने लगते हैं। कुछ ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के कर्मचारियों का प्रकाश में आया है। कर्मचारियों के अनुसार उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डॉ. राजशेखर ने कोरोना काल के दौरान वाहन 8 घंटे या उससे अधिक समय तक मार्ग पर चलाने पर अतिरिक्त ₹300 देने की घोषणा की थी, क्योंकि उस समय कोई भी अपने घरों से निकलने की जहमत नहीं कर रहा था परंतु तत्कालीन प्रबंध निदेशक के तबादले के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया, प्रबंध निदेशक का आदेश भी निगम के अधिकारियों ने निराधार साबित कर दिया।हद तो तब हो गई जब लखनऊ क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रबंधक ने सभी भत्तो के दिए जाने की बात कह दी। जबकि निगम द्वारा सिर्फ मई माह का भत्ता ही दिया गया जबकि निगम के हैदरगढ़, उपनगरीय, चारबाग़ की बसों ने शासकीय सेवाओं का संचालन अक्टूबर तक जारी रखा था। लेकिन उसका भुगतान नहीं हुआ, कई बार कर्मियों को अतिरिक्त भत्ता दिलाने की बात क्षेत्रीय अधिकारी करते रहे। परंतु हद तो तब हुई जब तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक पल्लव बोष ने भत्ता दे दिए जाने की बात कही।
तत्कालीन प्रबंध निदेशक द्वारा ज़ारी किया गया आदेश |
तभी से कर्मचारियों में ऊहापोह को स्थिति पैदा हो गईं कि हमें जब पैसा मिला नहीं तो आखिर गया तो गया कहां, शाखा कर्मचारियों के अनुसार परिवहन निगम मुख्यालय द्वारा अनेक नियम निर्धारित करता रहता हैं,परंतु कुछ ऐसे भी नियम है जिन्हें अधीनस्थ अधिकारी अपनी वाहवाही लूटने के लिए स्थापित कर देते हैं, जी हां कर्मचारियों की ज्वलंत मांगों में एक मुद्दा 4 दिन लगातार सेवा व 4 दिन सेवा अवकाश का भी बना हुआ है कर्मचारियों के अनुसार लखनऊ के अलावा अयोध्या, प्रयागराज,हरदोई आदि अन्य क्षेत्रों में 4 दिन का सेवा अवकाश दिया जा रहा है, व यह नियम आज से नहीं काफ़ी समय से चला आ रहा है। चूंकि कर्मचारी लगातार चार दिनों तक बसों में रहकर ही वाहनों का संचालन करते हैं। साथ ही संविदा पर मिलने वाला वेतन कर्मचारियों के लिए पर्याप्त नहीं होता है। जिस कारण कर्मचारी लगातार 4 दिन ड्यूटी कर 4 दिनों के लिए सेवा अवकाश लेकर घर चले जाते है।
अन्य क्षेत्रों में दिए गए अवकाश |
परंतु अधिकारियों के नए नियमों के अनुसार उन्हें घर जाने की तरह-2 की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।अलग-2 नियमावली कहीं ना कहीं कर्मचारियों को मानसिक तौर पर परेशान करते हुए देखे जा सकते हैं। एक विभाग होने के बावजूद भी नियम सभी क्षेत्रों के अलग-अलग है। इसका मुख्य कारण अधिकारियों के मनोस्थिति से लगाया जा सकता है। कर्मचारियों के अनुसार अधिकारियों द्वारा जबरिया 65% लोड फैक्टर लाने का दबाव बनाया जाता है नहीं लाने पर संविदा समाप्ति तक कि कार्यवाहीं की धमकी दे दी जाती हैं।
कर्मचारी संगठन द्वारा ज़ारी की गई नोटिस |
एक तरफ सूबे के मुखिया हर परिवार को एक रोज़गार देने के लिए पोर्टल तैयार कर रहे हैं,वहीं दूसरी तरह निगम के मनबढ़ अधिकारी नौकरी छीनने के आदेशों के साथ आय दिन देखे जा सकते हैं। जिसके कारण परिवहन निगम के हजारों कर्मचारी आए दिन मानसिक व शारीरिक रूप से शोषित हो रहे हैं। कर्मचारी संगठनों की माने तो डग्गामार वाहन शहरों के प्रमुख मार्गो व यात्री मिलने वाले स्थानों पर जिस तरीके से काबिज हैं, वहां पर अधिकारी अपने अधीनस्थों को कार्य हेतु आवश्यक दिशा निर्देश प्रदान नहीं करते हैं कर्मचारियों के अनुसार मुख्यालय स्तर से बसों की जांच कर बसों की व्यवस्था के लिए सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक और सीनियर फोरमैन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। चूकी बसों का संचालन इन्हीं जिम्मेदारों के कंधों पर होता है। कर्मचारियों पर लोड फैक्टर ना लाने का दबाव बनाकर परिवहन निगम के जांच अधिकारियों को व बस अड्डे पर लगाना चाहिए । कर्मचारी संगठन के अनुसार यदि कर्मचारी अपनी तरफ से कोई हीला हवाली या यात्रियों को उठाने में अनियमितता करते पाया जाता है, तो उस पर निश्चित तौर पर कार्रवाई करनी चाहिए। परंतु बिना समस्याओं के आकलन के चालक व परिचालक पर लोड फैक्टर के लिए दबाव बनाना कहीं ना कहीं मानसिक तौर पर दबाव बनाने जैसा है, जिस कारण विभाग के कई कर्मचारियों द्वारा मानवाधिकार आयोग की भी शरण ली गई है जिससे निगम के निरंकुश अधिकारियों पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया गतिशील हो सके।
वाहनों को धुलने के लिए चालक ही मजबूर
वाहनों को धुलते संविदा चालक |
हैदरगढ़ डिपो में काम करने वाले चालक से बातचीत करने पर मालूम चला कि, यदि चालक अपने वाहन को साफ सुथरा ना रखें, तो इसके लिए मुख्यालय स्तर से जांच कर रही टीमों द्वारा चालान काटने की व्यवस्था की गई है। परंतु इस कार्रवाई की जद में अकेले चालक परिचालक ही आ जाते हैं, अमूमन आज तक किसी अधिकारी पर कार्रवाई की कलम नहीं चल सकी है। बावजूद इसके प्रत्येक डिपो के संचालन की जिम्मेदारी सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक व सीनियर फोरमैन की होती है जिनके बिना आदेश किसी भी वाहन को कार्यशाला से बाहर नहीं ले जाया जा सकता। इसके बाद भी यदि गंदी वाहनों का संचालन मार्गों पर होता है तो इसके लिए चालक परिचालक उत्तरदाई कैसे हो सकते हैं।
ना वेतन ना सुकून, कैसे करें नौकरी
परिवहन निगम के संविदा कर्मचारियों का हाल नदी में दो नावों में एक साथ पैर रखने जैसा है। कर्मचारियों को एक तरफ लोड फैक्टर कम आने के कारण आए दिन अधिकारियों द्वारा जमकर फटकार लगा दी जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ सुदूर क्षेत्रों से आकर काम कर रहे कर्मचारियों को घर जाने में भी तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कर्मचारियों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लखनऊ में रहकर संचालन कार्य कर रहा है, और उसका घर बलिया या गोरखपुर में है, तो ऐसे कर्मचारियों को आने जाने में ही 2 दिन का समय लग जाता है। वेतन भी ऐसा नहीं है, जिससे परिवार समेत राजधानी में अल्प भुगतान में रहा जा सके। जिस कारण प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में लगभग सभी डिपो में कर्मचारियों द्वारा सेवाएं उपलब्ध कराने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
यदि वाहन चालक धुल रहे हैं।तो यह ठीक नहीं हैं, साथ ही काल का अतिरिक्त भत्ता देने के संबंध में जांच कर जल्द ही आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। एवं कार्य अवकाश संबंधी क्रियाकलाप में किसी तरह की कोई त्रुटि है तो उसका भी जल्द समाधान निकाल लिया जायेगा।
अन्नपूर्णा गर्ग अपर प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश परिवहन निगम
अभी तक के सभी संविदा कर्मचारी रेगुलर करे जाएं यह हमारी पहली मांग होनी चाहिए
जवाब देंहटाएंवेतन के नाम पे जीरो और काम करने वाले हीरो ही चाहिए सब काम चालक परिचालक ही करके विभाग को चला रहे है और उनके साथ ही दुर्वव्यवहार किया जाता ह न तो पैसा , इज़्ज़त और सभी नियम उन्ही पे लागू किया जाता ह और बात जब वेतन की आती है तो सब नियम और आदेश किनारे कर दिए जाते है
जवाब देंहटाएंसही मायने में देखा जाए तो चालक परिचालक को इतना पैसा नही मिलता की सही से खाना और बच्चो खिला पाना मुश्किल है बस मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है विभाग में
जवाब देंहटाएंYah Vibhag Samvida Walon ka shoshan karne mein koi kasar Baki Nahin Chhod rahi hai Baki Nahin Chhod rahi hai
जवाब देंहटाएंIss syatem ko update hone ki bhut jarurat hai...A to Z gaadiyo ka time table hona chahiye jiss tarah train or plan time table se chal rahe hai to fir roadways kyun nahi kyunki inhe dar ki isse load factor down ho jayega lekin isse load factor down nahi hoga balki ek acha system build hoga thoda time lagega marketing main process main but bhut kuch achaa ho jayega jo ye chotta or crupt vibhag labhi nahi chahega ...
जवाब देंहटाएंKyunki isse bhut se logo ko ghuskhori band ho sakti hai isliye ye time table kabhi nahi layenge ...ek baar sirf ek baar proper time table lane ki jarurat hai shuruvat main dikkat aayegi lekin har gaadi ka gaadi number generate kar diya jaye to poora system online jayega or jo log offline chal rahe hai wo sabhi online ke madhyam se easy mode se travelling kar sakte hai..
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