मजहब पर आधारित ऐसी पंक्तियां जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी।

Writer- Dr Madhulika Rai

Deoria


अमन का जो पैगाम लेकर न आए


ऐसे मजहब की कोई जरूरत नही है


हमको हिंदू मुसलमान कहकर जो बाटें


ऐसे सियासतदां की कोई जरूरत नही है


मिट जाए नामों निशान इस वतन से


यहाँ किसी जयद्रथ की कोई जरूरत नहीं है


बिखरा दो वादी में केसर की खुश्बू


गंधे-बारूद की अब जरुरत नही है


अलगाव की आग में हम बहुत जल लिए


यहाँ महबूबा उमर की अब जरुरत नही है


गिरा दो दिवारें यहाँ नफरतों की


अब यहाँ सरहदों की जरूरत नहीं है


अमन का... 

ऐसे मजहब... 



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